Blog

मानव मूल्य और संस्कृत साहित्य

डाॅ. वी. एस. कमलाकर

स्मबजनतमत पद भ्पदकपए

Lecturer in Hindi,

Government College for Woman, Srikakulam, Andhra pradesh 532001, Cell No’ 09441267061

 

पूर्ववाकः- भारतीय साहित्य और संस्कृति आचरणात्मक एवं आदर्शपूर्ण मानव मूल्यों के लिये एक अनुपम वैश्विक धरोहर हैं, जो शताब्दियों से अजश्र धारावत प्लावित सामाजिक जीवन में अपनी असीम गरिमा और अनन्त प्रासंगिकता को सिद्ध करते आ रहे हैं। भारतीय धरातल पर प्रणीत वेद वाङ्मय ही धरती पर मानव मूल्यों की सुदृढ आधारशिला रख चुका है, जिसके आधार पर हमारी भव्य संस्कृति की अट्टालिका अपनी पूर्ण गरिमा के साथ खड़ी है। मानव को कदाचित जब अपनी अस्मिता का बोध हुआ होगा, तब ही से उसने मूल्यों की परिकल्पना और उनका आचरण आरंभ कर दिया होगा। चार वेद और एक सौ आठ उपनिषद मानव को अपने गंतव्य की ओर इस तत्परता के साथ अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं कि उससे कहीं भी कोई त्रुटि न हो जाय। कहना न होगा कि मानव के लिये आचरणात्मक और अनाचरणीय जैसे सभी तत्वों का वेद वाङ्मय ने विस्तार में वर्णन किया है, जिन्हें हम आज मूल्यों की संज्ञा से अभिहित कर रहे हैं।

मानव जीवन की उत्कृष्टताः- चैरासी लाख योनियों में मानव जन्म को वेद वाङ्मय ने अत्यंत उत्कृष्ट सिद्ध किया है। उपनिषद का स्पष्ट कथन है कि-

‘आहार निद्रा भय मैथुनादि

सामान्यमेतत् पशुभिः नराणां

ज्ञानम् नराणां अधिकम् विशेषः

ज्ञानेन शून्यः पशुभिः समानः’

उक्त कथन से ज्ञात होता है कि मानव जीवन में ज्ञान का कितना महत्व है। इसी ज्ञान का विकास मानव जीवन को सार्थक बनाने हेतु मूल्यों के रूप में होता है। अतः स्पष्ट है कि ‘ज्ञानाधारित आचरणात्मक तत्वों का समाहार स्वरूप ही मूल्य हैं’। पूर्वोक्त उपनिषद वाक्य स्पष्ट करता है कि ज्ञान के अभाव में मानव पशु के समान हो जाता है। इसीलिये संप्रति हम ‘मानव मूल्य’ की बात ही करते हैं, क्योंकि हमें कहीं भी ‘पशु मूल्य’ जैसे पदबंध लक्षित नहीं होते हैं। मानव जीवन की उत्कृष्टता का वर्णन करते हुये शंकराचार्य अपने ग्रंथ

‘विवेक चूडामणि’ में कहते हैं कि-

‘दुर्लभम त्रयमेवै तद्दैवानुग्रह हेतुकम

मनुष्यत्वम् मुमुक्षत्वम् महापुरुष संश्रयः’

मूल्य की अमूल्य परिभाषाः- अर्वाचीन अर्थ-प्रधान युग में मूल्य शब्द का प्रयोग कई अर्थों में हो रहा है, यथा ‘दाम’, ‘कीमत’, ‘भाव’ इत्यादि, जो किसी वस्तु की लेन-देन में ही प्रयुक्त होते हैं, जिनका आचरणात्मक जीवन मूल्यों से कोई संबंध नहीं है। ”मानव जीवन को उसके उद्गम से उत्स तक ले जाने वाले आचरणीय सूत्रों के समाहार स्वरूप को ही मानव-मूल्य“ कहा गया है, जिनके अंतर्गत धर्माचरण, सत्य वचन, परोपकार, दानशीलता, निष्काम सेवा, त्याग, शान्ति, अहिंसा, सौहार्द्र भावना इत्यादि परिगणितहोते हैं। इन मानव-मूल्यों की उत्कृष्टता के वर्णनार्थ ही संपूर्ण वेद वाङ्मय का प्रणयन शताब्दियों पूर्व हुआ है। प्रातःकाल में नेत्रोन्मीलन से लेकर मानव द्वारा अनन्त निद्रा में प्रवेश करने तक की उसकी दीर्घ जीवन यात्रा में इन मानव मूल्यों को अपनाने की अनिवार्यता का वर्णन वेद वाङ्मय ने फलश्रुति सहित किया है। इनके अभाव में जीवन निस्सार मरुस्थल के समान रह जाता है। इन मानव मूल्यों के साँचे में ढालकर जीवन को सार्थक बनाना ही हमारे सनातन साहित्य का एक मात्र उत्स रहा है।

मानव मूल्य और प्रासंगिकताः- संप्रति युवा पीढी की दिशाहीन जीवन शैली को देखकर उद्विग्न शिक्षाविद-समाज ने कदाचित वर्तमान के पाठ्यक्रमों में इन मानव मूल्यों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया होगा, परन्तु शताब्दियों पूर्व ही हमारे क्रान्तद्रष्टा ऋषियों ने जीवन में इनकी अनिवार्यता एवं प्रासंगिकता के महत्व को पहचानकर इन्हें तत्कालीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के पाठ्यक्रम में सम्मिलित ही नहीं किया, प्रत्युत इनके आचरण पर अत्यधिक बल भी दिया। संप्रति पश्चिमी सभ्यता की झंझा में दिशाहीन बहती जा रही युवा पीढ़ी के लिये इन मूल्यों का आचरण अनिवार्य है, क्योंकि आज की पीढ़ी उछृंखलता को उन्नति और विज्ञान के विकृत उपयोग को विकास मानने की बड़ी भूल करती जा रही है। परिणामतः भारतीय प्रजा का एक सिंह-भाग इन मानव मूल्यों से अनभिज्ञ ही रह गया है, अतः संप्रति शिक्षा-प्रणाली के निर्माताओं का परम कर्तव्य यह है कि वे संस्कृत भाषा के अध्ययन को महाविद्यालय स्तर तक अनिवार्य बना दें।

प्राचीन वाङ्मय और मानव मूल्यः- संस्कृत में प्रणीत हमारा संपूर्ण वाङ्मय वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, भागवत, भगवद्गीता आदि के रूप में विद्यमान है, जिसमें हमारे जीवन को सार्थक बनाने के सभी उपक्रमों का उल्लेख विस्तार से है। इन उपक्रमों के रूप में वर्णित ‘मानव मूल्यों’ का उल्लेख संक्षेप में अधोलिखित पंक्तियों में किया गया है, यथा-

परोपकार और निष्काम सेवाः- जीवन एवं शरीर की प्राप्ति मानव-सेवा के लिये हुआ है, न कि भोग हेतु। इस संदर्भ में प्रकृति ही हमारा प्रथम गुरु है, यथा-

‘परोपकाराय फलन्ति वृक्षः

परोपकाराय वहन्ति नद्यः

परोपकाराय दुहन्ति गावः

परोपकारार्थमिदम् शरीरम्।’

उक्त श्लोक से हमें अपने कर्तव्य का बोध स्वयमेव हो जाता है। हमारी संस्कृति में मानव सेवा को ही माधव सेवा मानने की विशिष्टता निहित है। महाभागवत में वर्णित एक आख्या से ज्ञात होता है कि महाराजा रन्तिदेव ने महाविष्णु के प्रकट होने पर उनसे मोक्ष न माँगकर जनता की सेवा करने की शक्ति प्रदान करने का वरदान माँगा,यथा-

‘सेवा धर्ममिदम् सर्वम् ब्रोच्यते शास्त्र सम्मतम्

रंतिदेवो यथा सेवाम् अकरोत सर्वधा सदा’।

वाल्मीकि रामायण में भरत और लक्ष्मण का उदाहरण देते हुये कहा गया है कि-

‘सेवया मानवानाञ्च कृतज्ञो भरतो भवत्

माधवश्यैव सेवाच कृतज्ञो लक्ष्मणो भवत’।

भाव यह है कि भ्राता की आज्ञा पर भरत ने पादुकाओं के माध्यम जनता की सेवा की और लक्ष्मण ने स्वयं माधव की सेवा की, इस प्रकार दोनों ने सेवा भावना की विशिष्टता का निरूपण किया।

धर्माचरण- ध्यातव्य है कि यहाँ प्रयुक्त ‘धर्म’ शब्द किसी मजहब के लिये न होकर मात्र ‘कर्तव्य पालन’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। महाभारत के वन पर्व में एक शूद्र धर्मव्याध का आख्यान उल्लिखित है, जो मांस विक्रय का पेशा करता था, परन्तु उसने ब्राह्मण कौशिक को उपदेश देकर यह सिद्ध किया कि ‘संसार में स्वधर्माचरण से श्रेष्ठतम तथ्य अन्य कुछ नहीं है, जिसका आचरण ही मानव के लिये परमोत्कृष्ट धर्म है।’

‘जन्म संस्कार मात्रेण धर्म मार्ग प्रवर्तकः

उपदेशम् कौशिकाय धर्मव्याधो भवत्तदा’।

श्रीमद्रामायण में माता कौशल्या श्रीरामचन्द्र से अपने धर्म का आचरण करने का उपदेश देते हुये कहती है-

‘यंपालयसि धर्मम् त्वम् धृत्याच नियमेनच

सवै राघव शार्दूला धर्मम्त्वामभिरक्षतु’।

भाव है कि ‘हे राम! तुम जिस धर्म का आचरण करोगे, वही तुम्हारी रक्षा करेगा’। धर्माचरण को इस देश में अत्यंत प्रभावपूर्ण माना गया है। महाभारत के वन पर्व में यक्ष जब युधिष्टिर से अनेक प्रश्न पूछकर संतुष्ट होता है, तो वह कहता है कि ‘हे युधिष्टिर! बुद्धिजीवियों ने स्पष्टतः कहा है कि इस संसार में स्वधर्माचरण से बढकर अन्य कोई तपस्या नहीं है, जिसका आचरणकर तुमने उसके महत्व को सिद्ध कर दिया है।’, यथा-

‘तपस्वधर्म वर्तित्वम् इति प्रोक्तम् बुधैस्सदा

तस्मात्तदेव कर्तव्यम् यदा धर्मेण द्वापरे’।

श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय ‘कर्मयोग’ के 35वे श्लोक में भी इसी तथ्य की पुष्टि की गयी है, यथा-

‘श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्

स्वधर्मे निधनम् श्रेयः परधर्मो भयावहः’।

त्याग भावनाः- श्वास क्रिया की भाँति मानव के लिये त्याग भावना अत्यंत सहज होनी चाहिये, क्योंकि श्वास और आहार की भाँति सब कुछ स्वीकार करने के उपरान्त यदि शरीर उनका किसी न किसी रूप में परित्याग नहीं करता है, तो वह उस शरीर के लिये हानिकारक ही सिद्ध होगाय इसी प्रकार हम जो कुछ भी संचित करते हैं उनका त्याग भी अनिवार्य है। जब हम ‘अपनी आवश्यकतआओं की उपेक्षा कर किन्हीं जरूरतमन्दों का उपकार करते हैं, तो उसे ही त्याग भावना’ कहा गया है। कठोपनिषद का स्पष्ट कथन है कि कर्म, संतान अथवा धन के माध्यम अमृतत्व की स्थिति को कदापि नहीं पाया जा सकता है. केवल त्याग के माध्यम ही इसे प्राप्त किया जा सकता है, यथा-

‘न कर्मणा न प्रजया  धनेन

त्यागेनैकेन अमृतत्व मानसुः’।

महाभारत में राजा शिबि का आख्यान वर्णित है, जिसने एक कपोत की रक्षा के लिये अपने शरीर को काटकर बाज को मांस दिया था।

‘त्यागेनैकेन ख्यातोभूत शिभिस्सर्व महान् तधा

कपोत रक्षणार्धाय स्वशरीरमदात्तदा’।

महर्शि दधीचि और महारथी कर्ण त्याग भावना के संदर्भ में उल्लेखनीय गौरवशाली चरित्र हैं। महर्षि दधीचि ने वृत्तासुर के संहार के लिये अपनी रीड़ की हड्डी को दान में दे दिया, जिससे वज्रायुध का निर्माण हुआ, तो दानी कर्ण ने अपने जन्मजात कवच और कुंडल को दान में देकर अपनी त्याग भावना का परिचय दिया।

वचन पालन दृ वचन पालन को यदि भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व कहा जाय तो कदाचित अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इस धरती पर सदियों से वचन पालन को जीवन से भी अत्यधिक महत्व दिया गया है, यथा-

‘रघुकुल रीति सदा चलि आई

प्राण जाय पर वचन न जाई’।

इसी तथ्य को राजा हरिश्चन्द्र ने अपने जीवन में साकारकर ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ बन गया ‘हरिश्चन्द्रोपाख्यान’ में स्पष्टतः कहा गया है-

‘सत्य पालन धर्मेण हरिश्चन्द्रो भवत्तदा

राज्यम् सर्वम् परित्यत्वा श्मशानेच भवत्तदा’।

मत्स्य पुराण में राजा बलि का आख्यान विस्तार में वर्णित हैय जब राक्षस गुरु शुक्राचार्य को ज्ञात होता है कि राजा बलि ने वामन को तीन पग धरती दान देने का वचन दे चुका है, तो वह बलि को अपने वचन से मुकर जाने के कई तथ्य प्रस्तुत करता है, परन्तु बलि अपनी बात से टस से मस नहीं होता है । इसीलिये राजा बलि के बारे में कहा गया है-

‘बली राजा भवतत्रा सर्वेभ्यो दानकर्मणा

त्यागी भूत्वातु लोकेच कीर्तिमान भवत्तदा’।

कविकुल गुरु कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंशम’ के पंचम सर्ग में महाराज रघु की प्रशंसा में कहा कि रघु महराजमहर्षि वरतन्तु के शिष्य कौत्स की इच्छापूर्ति के लिये चैदह करोड़ स्वर्ण मुद्रायें दान में देकर अपनी वचनबद्धता का निरूपण किया, यथा-

‘रघुवंशे महाराजा विश्वजिद्याग तत्परः

धनम् ददौच कौत्साय रघुस्तत्र महानुभूत’।

उपसंहार: विषय की विशदता एवं स्थानापन्नता को दृष्टि में रखते हुये प्रस्तुत आलेख में विषय पर विहंगम दृष्टिपात मात्र किया गया है। वेद वाङ्मय में प्रयुक्त आचरणीय जीवन मूल्यों का अन्तिम उत्स मानव को पूर्ण शान्ति प्रदान करना ही है, क्योंकि भारतीय जीवन-दर्शन संतुष्टि और मानसिक शान्ति में ही परमानन्द को निहित मानता आ रहा है। अतः कहना न होगा की वेद वाङ्मय में वर्णित जीवन मूल्यों के आचरण के माध्यम इसी परमानन्द की स्थिति को प्राप्त करना ही हमारा गंतव्य रहा है। संप्रति अर्वाचीन जीवन में व्यक्ति समस्त संपदाओं और भोगों के होते हुये भी जिस शून्यता को महसूस कर रहा है, वह यदि उससे मुक्त होना चाह रहा है, तो उसके लिये इन उपरोक्त जीवन मूल्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ अपनाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है। वर्तमान युवा पीढी भी जब तक विज्ञान के आकर्षक भ्रमजाल और तथाकथित पश्चिम की ‘सभ्यता’ से स्वयं को मुक्त नहीं कर पायेगा, तब तक उसके लिये शान्ति मृगतृष्णा ही रहेगी । इसी तथ्य को ‘अमृत बिन्दोपनिषद’ में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, यथा-

‘मनयेव मनुष्याणाम् कारणम् बन्ध मोक्षयोः

बन्धाय विशयासक्तम् मुक्त्यै निर्विषयम स्मृतम्।

                मनस्सशान्तिरेवश्यात् मानवानाम् विशेषतः

शिवम् चैव शुभम् भूयात लौकिके पारलौकिके’।


free vector

185 Responses to मानव मूल्य और संस्कृत साहित्य

  1. Pingback: side effects of priligy in men

  2. Pingback: albuterol sulfate inhalation solution expired

  3. Pingback: hydroxychloroquine supported by doctors

  4. Pingback: hydroxychloroquine use in michigan

  5. Pingback: does hydroxychloroquine work for coronavirus

  6. Pingback: Social share tool

  7. Pingback: prescription ivermectil price

  8. Pingback: ivermectin price philippines

  9. Pingback: directions for priligy 60mg

  10. Pingback: plaquenil for fungal infection

  11. Pingback: stromectol antiparasitic for uti

  12. Pingback: where can i buy stromectol 6mg capsules

  13. Pingback: stromectol generic

  14. Pingback: liquid ivermectin for sale walmart

  15. Pingback: stromectol 375 mg uses

  16. Pingback: blog commenting sites seo

  17. ventolin inhalador [url=http://ventolin.directory/#]how to get albuterol without prescription [/url] how much does albuterol cost without insurance how often can you use albuterol inhaler for bronchitis

  18. effect of viagra [url=https://viagranz.xyz/#]viagra connect walgreens [/url] how does cialis for daily use work where to buy viagra uk

  19. электрический штабелер
    [url=https://elektroshtabeler-kupit.ru]http://elektroshtabeler-kupit.ru[/url]

  20. штабелер самоходный
    [url=https://shtabeler-elektricheskiy-samokhodnyy.ru]https://shtabeler-elektricheskiy-samokhodnyy.ru[/url]

  21. extended release metformin [url=https://metformin.beauty/#]metformin without prescription online [/url] most common side effect of metformin why does metformin give me diarrhea

  22. самоходный ножничный подъемник
    [url=https://nozhnichnyye-podyemniki-dlya-sklada.ru]http://nozhnichnyye-podyemniki-dlya-sklada.ru/[/url]

  23. plaquenil screening guidelines [url=https://plaquenilus.com/#]plaquenil tablets 200mg [/url] pusing plaquenil can lower ana why after 5 years use plaquenil no effect any more

  24. электрическая рохля
    [url=https://samokhodnyye-elektricheskiye-telezhki.ru]https://samokhodnyye-elektricheskiye-telezhki.ru[/url]

  25. doxycycline in children [url=https://doxycyclineus.com/#]doxycycline prices canada [/url] doxycycline for chlamydia how long to work doxycycline how does it work

  26. самоходная тележка
    [url=https://samokhodnyye-elektricheskiye-telezhki.ru]http://samokhodnyye-elektricheskiye-telezhki.ru/[/url]

  27. телескопическая вышка
    [url=https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru]https://www.podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru/[/url]

  28. телескопический подъемник
    [url=https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru]https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru[/url]

  29. телескопический подъемник
    [url=https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru]http://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru/[/url]

  30. вышка телескопическая
    [url=https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru]https://podyemniki-machtovyye-teleskopicheskiye.ru[/url]

  31. стол подъемный
    [url=https://gidravlicheskiye-podyemnyye-stoly.ru]https://gidravlicheskiye-podyemnyye-stoly.ru[/url]

Leave a Comment

Name

Email

Website