प्रो. एस. ए. सूर्यनारायण वर्मा,
अनुसंधान वैज्ञानिक, हिन्दी विभाग,
आन्ध्र विश्वविद्यालय, विशाखपट्टणम, आन्ध्र प्रदेश
कवि महेन्द्र भटनागर हिन्दी-साहित्याकाश के एक उज्ज्वल नक्षत्र हैं। महेन्द्र भटनागर का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। डाॅ. महेन्द्र भटनागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनकी पहचान कवि, गीतकार, लघु कथाकार, रेखाचित्रकार, आलोचक और बाल साहित्यकार के रूप में है। कवि महेन्द्र भटनागर ने अपनी रचनाओं में मानव-मूल्यों का समर्थन किया। शोषित, पीड़ित एवं उपेक्षित वर्ग के लोगों की स्थिति में सुधार लाने की इस कवि ने जोरदार माँग की है। ये मानव-स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक के रूप में अपनी कविताओं में दर्शन देते हैं। महेन्द्र भटनागर की कविताओं में शोषित एवं अत्याचारों से पीड़ित नारी के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गई है। किसानों एवं मजदूरों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार लाने की माँग करते हुए कवि महेन्द्र भटनागर ने मानव-मूल्यों की भित्ति पर सामाजिक व्यवस्था की पुनर्रचना की आवश्यकता पर जोर दिया और इस दिशा में जन-चेतना को जागृत करने का प्रयास किया है।
कवि श्री महेन्द्र भटनागर की एक लंबी काव्य रचना यात्रा है। पंद्रह संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। अपने समय-समाज की जीती-जागती तस्वीर इन संकलनों में प्रस्तुत है – तारों के गीत (1949) टूटती श्रृंखलाएँ (1949) बदलता युग (1954) अभियान (1954) अंतराल (1954) विहान (1956) नई चेतना (1956) मधुरिमा (1959) जिजीविषा (1962) संतरण (1963) संवर्त (1972) संकल्प (1977) जूझते हुए (1984) जीने के लिए (1990) और आहत युग (1998)। संवेदनशील कवि महेन्द्र भटनागर ने अल्प संख्यकों के कल्याण को ही अपना लक्ष्य घोषित किया है और मानव-अधिकारों से वंचित लोगों की व्यथा को स्वर देने तथा उन्हें समान अधिकार दिलाने की माँग करने का स्तुत्य प्रयास किया है। महेन्द्र भटनागर की प्रारंभिक कृतियों का संकलन ‘तारों का गीत’ है। 21 गीतों के इस संकलन में 1941-42 के गीत संगृहीत हुए हैं। राजनीति के दृष्टि से यह समय ‘भारत छोड़ो आंदोलान’ का समय है और साहित्य के इतिहास में प्रगतिवाद का दौर। तारों के गीत होने पर भी इन पर समय और परिवेश का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित है। तत्कालीन सामाजिक स्थिति का बोध ये कविताएँ कराती हैं। समसामायिक परिवेश को इन पंक्तियों में अनुभव किया जा सकता है। शोषण के कारण असीम यातनाओं का सामना करते हुए दुर्भर जीवन बिताने वालों की दयनीय दशा का कवि ने निम्न पंक्तियों में यथार्थ अंकन किया हैः
शोषण की आंधी ने आ मानव को अंधा कर डाला
क्रूर नियति की भृकुटि तनी है, आज पड़ा खेतों में पाला,
त्राहि-त्राहि का आज मरण का जब सुन पड़ता है स्वर भीषण
चारों ओर मचा कोलाहल, है बुझता दीप जटिल जीवन।
‘प्रगति’ संकलन की कविताओं में प्रगतिशील स्वर मुखर है। ”इतिहास“ ”जनरव“ आदि कविताएँ क्रांति के पथ पर जनता के प्रस्थान का संकेत देती हैं। अपने अधिकारों के प्रति जनता को सचेत करने और अपनी शक्ति को पहचान कर शोषण से मुक्ति के संकल्प को लेकर आगे बढ़ने को संसिद्ध लोगों की सोच को इनकी कविताएँ प्रतिबिंबित करती है। महेन्द्र भटनागर जिस जोश से इसको वाणी-बद्ध करता है उससे क्रांति का एक जीवंत माहौल बन जाता है-
सदियों बाद हिले हैं थरदृथर
सामंती युग के लौह-महल,
जनबल का उगता बीज नवल,
धक्के भूकंपी क्रुद्ध सबल!
युग की समसमायिक अस्तव्यस्तता के साथ जीवन के प्रति आस्था और विश्वास की मानसिकता ‘निशा का युग’ कविता में प्रतिफलित है। कवि की पहली प्रकाशित कविता ‘हुँकार’ भी इस संकलन में है। मानवता और प्रेम के पूजारी कवि – ‘दुनिया में सिर्फ रहेंगे ईश्वर से अनभिज्ञ्र प्राणी-प्राणी प्रेमू प्रतिज्ञा’ कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वे ईश्वर को नकारते हैं। उन्होंने रूढ़ियां अंध-विश्वास और मूढ़-मान्यताओं के विरुद्ध आवेगपूर्ण, किन्तु विवेक संपन्न सशक्त उद्गार अवश्य प्रकट किये हैं। उनकी मान्यता है कि –
इस स्थिति को बदलना है कि
आदमी-आदमी को लूटे
उसे लहू लुहान करें,
हर कमजोर से बलात्कार करें,
निद्र्वन्द्व नृशंस प्रहार करें,
अत्याचार करें, और फिर
मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर,
गुरुद्वारा जाकर,
भजन करे, ईश्वर के सम्मुख नमन करें! (आहत युग- पृ. 15)
– महेन्द्र भटनागर ने मानवता की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और इसके बाद ईश्वर-भजन-नमन। वे लिखते हैं-
मजहब का आदिम बर्बर उन्माद नशा बनकर,
हावी है दिल पर सोचदृ समझ पर।
इस मनप्रस्थिति का कवि विरोध करते हैं।
आतंक – घेरे में आदमी,
सड़क पर बिखरी लाशें,
निरीह माँ-बहनें, भाई, बाप,
मित्र मूक विवश हैं पर-
जश्न मनाता पूजा धर में,
सतगुरु, ईश्वर, भक्त, खुदा-परस्त (फतहनामा – पृ. 5)
इसी से कवि को चिढ़ है, इन्हें वे बेबाक लताड़ते हैं। उनका यह विरोध-लताड नास्तिकता का नहीं, आस्तिकता का उज्ज्वल आक्रोश पक्ष है, मानव-प्रेम का सकारात्मक चिंतन है। मानव प्रेम की कसौटी पर जीवन को सार्थक बनाने के प्रयास में हर व्यक्ति के कुंदन बनने की चाह में ईश्वर-धर्म का महान स्वरूप समाहित है। मनुष्य के हित-चिंतक कवि अपने ‘निवेदन’ में ‘हर फूल खिलने दो्र जरा डालियों पर्र प्यार हिलने दो जरा’ का भाव प्रकट करते हैं। आगे चलकर ‘आहत युग’ के प्रौढ़ कवि मानव के उत्कर्ष का चरम निवेदन करते हैं-
हर व्यक्ति सूरज-सा दमकते दिखे
ऊष्मा भरा, किरणों धरे
हर व्यक्ति सूरजा – सा
चमकता दिखे!
महेन्द्र भटनागर की सामाजिक चेतना की प्रभाविष्णुता उसके विचारों, अनभूतियों, भावनाओं और कल्पनाओं के संसार में प्रकट हुई है। महेन्द्र भटनागर की कविता अपने समय का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। महेन्द्र भटनागर ने पूरी ईमानदारी और सजगता से अपने परिवेश में फैली जड़ता, निष्क्रियता, यांत्रिकता, भ्रष्ट व्यवस्था, स्वार्थ और अराजकता के परिणामों को पूरी कुशलता के साथ से उजागर किया है। सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में स्वतंत्रता-पूर्व और परवती, समय की समस्याएँ, जन-आंदोलन के दौर से गुजरता हुआ सत्ता-परिवर्तन, राष्ट्रीय संकट, आर्थिक भ्रष्ट माहौल आदि के साक्षी स्वयं कवि हैं। अपने समय की सामाजिक स्थिति और राजनीतिक गति के संपर्क में आते रहने के फलस्वरूप का सर्जनशील व्यक्तित्व इससे प्राणरस ग्रहण करता है। सामाजिक परिवर्तनों और साहित्यिक आंदोलनों से कवि भली-भाँति परिचित रहे। कवि महेन्द्र भटनागर ने सामाजिक परिवर्तन में कविता की अनन्य भूमिका को स्वीकार कर युगबोध को कविता के माध्यम से समाज तक पहुँचाने का भरसक प्रयास किया। मानवता और मूल्य-चेतना को विकसित किया और रचनाधर्मिता को उद्देश्यमूलक एवं अर्थपूर्ण बनाया।
कवि महेन्द्र भटनागर का सृजन-संसार विशाल और व्यापक परिधि को समेटे हुए है। ‘तारों के गीत’ से लेकर ‘आहत युग’ तक की कविताओं में व्यक्त सामाजिक चेतना, युगदृबोध, मानवमूल्य, जीवन-संवेदना, रूप-सौन्दर्य, प्रणयानुभूति आदि प्रवृत्तियों के मूल में अंतनिर्हित है – कवि की मूल्य-दृष्टि। अनुभूति की गहराई और अभिव्यक्ति की मार्मिकता इस दृष्टि को रंग देती हैं और सृजन-संसार को सोद्देश्य बनाती हैं। महेन्द्र भटनागर की गहन सामाजिक चिंता और उज्ज्वल भविष्य के प्रति आस्था इस दृष्टि को विशेष रूप से ज्ञापित करती हैं। कवि महेन्द्र भटनागर के सृजन-संसार में मानव-हित-चिंतन का स्वर प्रमुख है। इन कविताओं में मानव की पीड़ा, सुख-दुख, भाव-आभाव वर्णित हैं। इनकी कविताएँ स्वतप्र स्फूर्ति आवेग से जीवंत हैं। महेन्द्र भटनागर अत्यंत संवेदनशील कवि और चिंतनशील बुद्धिजीवी हैं जो किसी मतवाद के अंध अनुयायी नहीं बनना चाहते। मनुष्य की समता, शांति और प्रगति में कवि विश्वास करते हैं और उसके शोषण के वे घोर विरोधी हैं। कवि में अनुभूति की ईमानदारी और विचार-स्वतंत्रता के प्रति निष्ठा है। महेन्द्र भटनागर का वैचारिक और संवेदनात्मक धरातल अभिनव सौन्दर्य से समृद्ध है। उसमें उत्कृष्ट विचार, गहन अनुभूति, नया शिल्प-विधान ही नहीं, मानवता के ऊँचा उठाने की अमेय शक्ति भी है। वे अभिनव शैली-शिल्प से युक्त मानवतावादी और प्रगतिशील आस्था के कवि हैं
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